राँची में लाहिड़ी महाशय की 197वीं जयंती श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई गई

राँची में लाहिड़ी महाशय की 197वीं जयंती श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई गई

राँची में लाहिड़ी महाशय की 197वीं जयंती श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई गई
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By : स्वराज पोस्ट | Edited By: Urvashi
: Sep 30, 2025, 2:34:00 PM

राँची स्थित योगदा सत्संग शाखा आश्रम में आज महान योगावतार लाहिड़ी महाशय की 197वीं जयंती बड़े हर्ष और श्रद्धा के साथ आयोजित की गई। जयंती समारोह की शुरुआत सुबह 6:30 बजे से 8:00 बजे तक स्वामी शंकरानन्द गिरि द्वारा संचालित ऑनलाइन ध्यान सत्र से हुई, जिसमें भारत और विदेशों के भक्तों ने भाग लिया। इस अवसर पर स्वामी शंकरानन्द गिरि ने कहा, “लाहिड़ी महाशय का जीवन आधुनिक युग में संतुलित और प्रसन्न जीवन जीने का श्रेष्ठ उदाहरण है। उन्होंने क्रियायोग ध्यान के नियमित अभ्यास को कर्मयोग से जोड़ा, जो समाज और परिवार की सेवा में अभिव्यक्त होता है।”

सुबह 9:30 बजे से 11:30 बजे तक आश्रम में ब्रह्मचारी गौतमानन्द और ब्रह्मचारी आराध्यानन्द द्वारा आयोजित हृदयस्पर्शी भजन संध्या ने भक्तों को आध्यात्मिक उल्लास से भर दिया।

शाम 6:00 बजे से रात 8:00 बजे तक ब्रह्मचारी हृदयानन्द के मार्गदर्शन में दो घंटे का विशेष ध्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस सत्र में योगी कथामृत (श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा) से लाहिड़ी महाशय के शिक्षाप्रद वचन पढ़े गए। उन्होंने कहा, “‘यह समझो कि तुम किसी के नहीं हो और कोई तुम्हारा नहीं है। इस संसार को छोड़ने का समय निश्चित है, इसलिए अब से ही ईश्वर को जानो। हर दिन ध्यान के माध्यम से मृत्यु के बाद की यात्रा के लिए स्वयं को तैयार करो। माया में फँसकर अपने शरीर को केवल दुःखों का घर मत समझो। निरंतर ध्यान से अपने को अनंत परमतत्त्व से जोड़ो और क्रियायोग की रहस्यमयी विधि के माध्यम से देह-बंधन से मुक्त होकर परमात्मा में विलीन होना सीखो।’”

योगदा सत्संग परम्परा के प्रमुख गुरुओं में से एक, योगावतार लाहिड़ी महाशय, महान हिमालयी योगी महावतार बाबाजी के शिष्य थे। महावतार बाबाजी ने उन्हें प्राचीन क्रियायोग का रहस्य बताया और सभी योग्य साधकों को दीक्षा देने का आदेश दिया। लाहिड़ी महाशय की विशिष्टता यह थी कि उन्होंने सभी धर्मों और समाज के विभिन्न वर्गों के साधकों को क्रिया दीक्षा प्रदान की। वे गृहस्थ-योगी थे, जिन्होंने पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का पालन करते हुए भक्ति और ध्यान का संतुलित जीवन जीया। उनका यह जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा बन गया जो सांसारिक जीवन में रहते हुए आध्यात्मिक उन्नति चाहते थे। उन्होंने समाज के बहिष्कृत और दलित वर्गों को नई आशा दी और जातिगत भेदभाव के खिलाफ साहसी प्रयास किए।

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